जब मायापुरी पत्रिका में छपा था असरानी का इंटरव्यू

असरानी का इंटरव्यू When Asrani's interview was published in Mayapuri magazine

असरानी का इंटरव्यू : आज के प्रसिद्ध हास्य कलाकार असरानी से मेरी भेंट यूं तो कई बार हुई मगर इस बार जब उसे राजेश खन्ना के साथ काम करते हुए फिल्म ‘बंडलबाज’ के सैट पर देखा तो बड़ा ही विचित्र लगा। विचित्र इसलिए कि राजेश खन्ना बार-बार रिटेक दे रहा था और असरानी एक ही बार में इतने कमाल का शाॅट दे गया कि सैट पर उपस्थित सभी लोगों के मुंह से वाह-वाह निकल पड़ी।

मैंने असरानी से ‘मायापुरी’ के लिए एक इंटरव्यू टेप करने की इच्छा प्रकट की जिसे सहज भाव से उसने स्वीकार कर लिया और दूसरे दिन मोहन स्टूडियो में आने के लिए कहा। दूसरे दिन मोहन स्टूडियो मंे असरानी से भेंट हुई। तो बड़ी ही प्रसन्न मुद्रा में वह बैठा था। अपने वायदे के अनुसार उसने हमें लगभग पैंतालिस मिनट का इंटरव्यू टेप करवायां उसी टेप इंटरव्यू के कुछ अंश यहां प्रस्तुत हैं।

‘हर नाम का कोई न कोई महत्व होता है, किसी न किसी अर्थ को वह अपने आप में संजोए हुए होता है। उसी संदर्भ में मेरा पहला प्रश्न यह है असरानी जी कि आपने अपना नाम असरानी क्यों रखा? क्या असरानी शब्द से किसी अर्थ विशेष की अभिव्यक्ति होती है?’

‘जी नहीं, दरअसल मेरा नाम गोवर्धन कुमार है। असरानी थोड़ा छोटा नाम है और मन को अच्छा लगता है इसलिए रख लिया। कोई खास अर्थ नहीं है इसका। बस यूं ही असरानी, आप देखिए कहने में भी थोड़ा मजा आता है क्यों?’

‘बिल्कुल हां तो असरानी जी यह बतायें कि जब आप किसी पात्र को सैट पर करते हैं तो उसकी इमेज पहले ही आपके मन में होती है या सैट पर जा कर ही बनती है?’

‘सैट पर जा कर तो बिल्कुल नहीं बनती जी। दरअसल पहले से दिमाग मंे एक तस्वीर बनानी पड़ती है। इस सम्बन्ध में मैं चरित्र कलाकार डेविड साहब की एक बात आपको बताता हूं। एक बार डेविड साहब से मेरी भेंट हुई तो उन्होंने बताया कि उन्होंने एक सौ चालीस, पैंतालिस फिल्मों में काम किया है।

अब तो शायद यह टोटल बढ़कर तीन सौ या उससे ज्यादा हो गया हो। हां तो उन्होंने कहा कि जिन फिल्मों में उन्होंने काम किया उनकी कहानी तक उन्हें नहीं पता थी। डेविड साहब बोले कि बस सैट पर जा कर पता चलता है कि हमें फलां हीरोईन का बाप बनना है और फलां का पति।

वहां पर डायलाॅग बता दिए जाते हैं और ड्रेस दे दी जाती है कि यह तुम्हारी ड्रेस है पहन लो। जब डेविड साहब की यह बात मैंने सुनी तो बड़ा दुख हुआ। दुख इसलिए कि जब आपको अपने कैरेक्टर का पता नहीं है, ड्रेस का पता नहीं है और आपको अपनी कहानी का पता नहीं है तो अपने कैरेक्टर के साथ आप कैसे इन्साफ करेंगे। मैं तो साहब पहले कहानी सुनता हूं और उसमें अपने कैरेक्टर देखता हूं।

अगर कोई कहानी पसन्द नहीं आती तो माफी मांग लेता हूं। कह देता हूं कि नहीं साहब डेट्स नहीं हैं या कहानी पसंद नहीं है और ये कैरेक्टर वाली बात तो साहब, इसके बारे में तो पहले ही सोचना पड़ता है तभी अंदर की चीज बाहर आ पाती है।’

‘खैर यह तो निश्चित बात है असरानी जी की कहानियों के प्रति तो विवेक से काम लेना चाहिए और कम से कम नए आर्टिस्ट के लिए तो यह बिल्कुल जरूरी है। इस बारे में आपका क्या ख्याल है?’

‘आर्टिस्ट तो हमेशा नया ही होता है। कल तक तो मैं अशोक कुमार जी के साथ एक फिल्म में काम कर रहा था। कितने पुराने मंजे हुए कलाकार हैं। अशोक जी?

मगर आज भी उन्हें सैट पर दस बजे पहुंचना है तो ठीक दस बजे ही पहुंचेगे। ये मैंने खुद अपनी आँखों से देखा है कि वे सैट पर मेरा डायलाॅग क्या है, मुझे क्या करना है, मैं कहां बैठूं इस तरह निर्देशक से पूछते हैं कि जैसे पहला दिन हो उनकी जिन्दगी में शूटिंग का। तो इस बात को आखिर आप क्या कहेंगे? मेरी अपनी पूरी कोशिश यही रहती है कि मैं कुछ सीखूं। सम्पूर्णता में यकीन नहीं रखता। यदि कोई आर्टिस्ट बहुत जल्दी खत्म हो जाता है।’

‘पूना इंस्टीट्यूट से आने वाली प्रतिभाओं का अभिनय जीवन प्रायः क्षणिक रहता है। एक साल, दो साल या तीन साल और फिर धीरे-धीरे ये प्रतिभाएं समाप्त हो जाती है। क्या कभी आपने इस बारे में भी सोचा है असरानी जी कि आप लम्बे समय तक टिक पाने के लिए कुछ ऐसा करें कि दर्शकों के हमेशा चहेते बने रहें।’

‘हूं’ असरानी ने एक पल सोचते हुए कहा, ‘बात यह है वशिष्ठजी कि यह तो आप मानेंगे कि कुछ तो है इन प्रतिभाओं में, नहीं तो ‘चेतना’ जैसी फिल्म चलती नहीं। हुआ क्या, हुआ ये कि धीरे-धीरे इन प्रतिभाओं ने दर्शकों को निराश कर दिया। वो चमत्कार नहीं दिखलाया जो दिखलाना चाहिए।

दर्शक बेचारे क्या करें, उन्होंने एक नहीं दो और तीन मौके दिए और फिर भी कुछ बात नहीं बनी तो उन्होंने ऐसे आर्टिस्टों को भुला दिया जो उनका मनोरंजन न कर सकें। बेचारे दर्शक तो आखिरी क्षण तक ताली बजाने के लिए तैयार रहते हैं मगर कलाकारों को भी तो सोचना चाहिए।

रही मेरी बात, तो मैं तो साहब तरह-तरह की भूमिकाएं करना चाहता हूं अशोक जी की तरह और स्व. मोतीलाल जी की तरह। एक ही तरह का मनोरंजन दर्शकों में उकताहट पैदा कर देता है, इसलिए मेरी कोशिश हेमशा यही रहती है कि कुछ नयापन हो। कुछ जानदार चीज सामने आए, क्यों?’

‘निश्चित बात है असरानी जी। हां, तो आप हास्य कलाकार हैं। असरानी जी, एक बात बतायें कि आज जबकि जीवन की परेशानियां इतनी बढ़ गई हैं। लोग दाने-दाने के लिए परेशान हैं तो मान लो आपको किसी ऐसी भीड़ में खड़ा कर दिया जाए जो भूखे-नंगे हों।

जिनके चेहरे भूख से कुम्हला गए हों। और उन्हें पता हो कि अभी छः दिन उन्हें और खाना नहीं मिलेगा। इस तरह के लोगों के बीच आपको खड़ा करके कहा जाये कि असरानी जी हंसा दीजिए इन्हें, इनके चेहरे पर मुस्कुराहट लाइए तो आप क्या करेंगे?’

असरानी दूर धुंधलके में जैसे कहीं खो गया था। बड़ी ही भावुकता से वह बोला, ‘नहीं ऐसे लोगों को में नहीं हंसा सकता। ऐसी भीड़ में तो मैं खुद खो जाऊंगा, मेरी इंसानियत बाहर आ जायेगी। हां, यदि मेरे सीने पर बन्दूक रख कर जबर्दस्ती कहा जाए तो शायद कुछ कोशिश करूं।’ असरानी ने संयत होते हुए कहा।

एक हास्यस्पद प्रश्न पूछ रहा हूं असरानी जी, जो पाठकों के लिए रुचिकर होगा। आपकी मान लीजिए शादी न हुई होती तो जिस तरह राजेश खन्ना ने या अमिताभ ने सरप्राईज दिया विवाह के मामले में, तो आप क्या सरप्राईज देते?’

‘भई मैं तो जीनत अमान को लेकर भाग जाता।’ असरानी ने ठहाका लगाते हुए कहा
‘मायापुरी’ के सम्बन्ध में असरानी ने अपनी शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए कहा, ‘इसे आप स्वस्थ और रुचिकर पत्रिका बनाएं। ऐसी पत्रिका ‘मायापुरी’ बने, जिसमें पाठकों का भरपूर मनोरंजन हो।

कलाकारों के विषय में उचित और तर्कसंगत बातें लिखी जायें तभी सच्ची तस्वीर सामने आयेगी।’

असरानी ने ‘मायापुरी’ के पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देने के लिए भी स्वीकृति दी है। शीघ्र ही हम इस सम्बन्ध में घोषणा करेंगे। ’मायापुरी’ के पाठकों के लिए असरानी का पता प्रस्तुत है:

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