यादों के दायरे: अपने बीते दिनों को लेकर मनोज कुमार बनाई थी ‘रोटी कपड़ा और मकान’

Yaadon ke daayre Manoj Kumar had made 'Roti Kapda Aur Makaan' about his past days.

यादों के दायरे : दिल्ली से एक ब्राह्यण परिवार का एक नौजवान हीरो बनने बम्बई आया तो बहुत जल्दी उसे आटे-दाल का भाव मालूम हो गया. एक दिन ऐसा भी आया कि उसके पास दाल छोड़ रोटी भजिया-पाव खाने के भी पैसे न रहे.
रात का समय था. बहुत भूखा था. भूख के मारे पेट में चूहे उछल कूद कर रहे थे. और उन्हें खामोश करने के लिये उसकी जेब एक दम खाली थी.

दरअसल उसका गुजारा दोस्तों की मेहरबानी के कारण होता था. जैसे-जैसे रात गुजरती जा रही थी, भूख उतनी ही तेजी से लगती जा रही थी. लेकिन उस रात उसे एक भी ऐसा हीरो न मिला जिसके साथ बैठ कर वह खाना खा सकता या वक्त ही गुजार सकता. भूख इसलिए और भी अधिक लग रही थी कि उस दिन सुबह से उसके पेट में अन्न का एक दाना भी नहीं गया था.

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उस जमाने में रात के ग्यारह बजे होटल बन्द हो जाते थे. उस वक्त रात के ग्यारह बजने में पांच मिनट शेष थे. उसने तुरंत कुछ निर्णय लिया और एक इरानी के होटल में घुस गया. वह एक ऐसा होटल था जहां पर उसके दोस्त अक्सर शाम का समय गुजारा करते थे. कभी-कभार खाना भी खा लिया करते थे. लेकिन इसके बावजूद नौजवान की होटल के इरानी मालिक से कोई जान पहचान न थी. अलबता वह उसकी सूरत से परिचित जरूर था.

उससे दो घंटे पहले वह अपने दोस्तों को ढूंढता हुआ वहां आया था और निराश होकर वापस चला गया था. इसलिए होटल का वेटर भी उसकी सूरत से वाकिफ था. वह समझा कि वह चाय पीने आया है. नौजवान भूख से निढाल था. उसने बैठते ही एक लम्बा सा खाने का आर्डर दे दिया. वेटर उसका मुंह देखता रह गया.

पैसों के बिना बिना खाए रहे 

ग्यारह बजे होटल का मेनगेट बन्द कर दिया गया. मालिक दिन भर की कमाई गिनने लगा. नौजवान भूख से बेचैन इधर-उधर देखे बिना खाने का जुट गया. उसे डर था कि अगर उसने इरानी मालिक की ओर देख लिया तो भूख मर जाएगी. उसने जेब खाली होने पर दो-चार आने का नहीं, पूरे पौने दो रूपये का खाना मंगवा लिया था. पैसों के बिना खाना खाने का उसका यह पहला अवसर था.

अब हालत यह थी कि पेट की आग बुझाये बिना वह सो नहीं सकता था. वह इससे पूर्व केवल चाय पीकर भी सो जाया करता था किन्तु आज की भूख ऐसी न थी. उसने हिम्मत करके खाना तो खा लिया परंतु खाना खा कर वापस जाने की उसमें हिम्मत न थी. उसने खाना खा कर गटागट तीन गिलास पानी चढ़ा डाला.

उसके बाद उसे लगा कि अब जीवन में कभी भूख नहीं लगेगी. अब वह सारी रात दोस्तों की तलाश में भटक सकता था. उसने साहस बटोर कर वाश-वेसन में हाथ धोये और आहिस्ता से वेटर से पूछा-‘कितने पैसे हुये?’
एक रूपया बारह आना! वेटर ने बताया

‘अच्छा!’ और वह कांउटर की ओर बढ़ गया.

‘साहब का एक रूपया बारह आना! वेटर ने आवाज लगाई.

आज पैसे लाना भूल गया हूं

इरानी मालिक ने नोट गिनते गिनते हाथ रोक कर सिर ऊपर उठाया. देखा सामने एक जाना-पहचाना चेहरा खड़ा है.
‘सेठ जी! क्षमा करना, आज पैसे लाना भूल गया हूं. नौजवान ने क्षमा का पात्र बने हुए गिड़गिड़ा कर कहा.

इरानी मालिक उसका मुंह ताकता रह गया. किन्तु वह कुछ बोल न सका सामने नौजवान पत्थर की मूर्ति बना खड़ा था. जगह से हिलने के लिए उसे मालिक का जवाब चाहिये था (जेब खाली जो थी).

अगर मालिक तलाशी भी लेता तो जेब से संधर्ष की धूल के सिवा कुछ न मिलता) उसे यूं मौन खड़ा होना खल रहा था और डर रहा था कि अब कयामत टूटने वाली ही है.

‘‘कोई बात नहीं, कल दे जाना ! ’’ मालिक ने उसके चेहरे से सच्चाई को पढ़ते हुए कहा.

वह नौजवान बाहर निकल आया. और उसने मन ही मन भगवान का शुक्र अदा किया) बाहर आसमान पर तारे हंस रहे थे. और नौजवान विधाता की बिडम्बना पर हंस रहा था. कल भूख उसकी अपनी समस्या थी आज पूरे भारत वर्ष की यह समस्या है. और इसी समस्या को लेकर कल के उस भुखे, नौजवान ने उन दिनों के तजुर्बे को गिन गिन कर ‘रोटी कपड़ा और मकान’ फिल्म  का निर्माण किया है.

जी हां आप उस नौजवान को मनोज कुमार के नाम से जानते हैं. उसकी हर फिल्म इसीलिए जीवन से करीब होती है कि उसके जीवन को बहुत करीब से देखा था. इसी लिए वह जीवन और जीवन के सत्य को जानता है. ’’’

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